Friday 8 March 2013

झुका देता हूँ सर अपना, जहाँ कुछ नूर पाता हूँ।........


झुका देता हूँ सर अपना, जहाँ कुछ नूर पाता हूँ।
मेरी मस्ती का ये आलम, नशे मे चूर पाता हूँ।।1।।

तेरे वुत के सिवा मुझको, जहाँ में बुत नही दिखता।
खिचा आता हूँ दर तक फिर , बङा मजबुर पाता हूँ।।2।।

मुझे सजदा नही आता , मगर दिल में तसल्ली है।
नजर में कान में हरदम, तुझे भरपूर पाता हूँ।।3।।

हवा का ये असर है या,  कि केवल भ्रम है ये मेरा।
कभी कदमों में गिरता हूँ, कभी मगरुर पाता हूँ ।।4।।

तुम्हारा भी तो मन होगा, कभी कुछ खेलने का क्यों।
करीबी का मजा मिलता,  कभी कुछ दूर पाता हूँ ।।5।।

भला या की बुरा कुछ भी, नही मालूम मुझको है।
तेरा त्र्यम्बक बताते सब, यही मशहूर पाता हूँ।।6।।
 











































वृद्धत्वं चायातम्


वृद्धत्वं चायातम्.......
पलिताः केशाः गतावशेषाः, वृद्धत्वं चायातम्।
कम्पितगात्रो धावति लोके, सोढ्वा शतमाघातम्।
वृद्धत्वं चायातम्।।1।।

श्रवणैर्हीनो नेत्रविहीनो, दन्तैर्हीनो दीनः।
तदपि लालसा भोगास्वादे, लिप्सुर्चान्याधीनः।।
व्यर्थं ब्रूते कोपि न श्रोता, पश्यन्नपि परिपातम्।।
वृद्धत्वं चायातम्।।2।।

हा हा हूँ हूँ करोति सततम्, चिन्ताव्याकुलचित्तः।
विलपति विहरति विनावसायः, स्वजनैरपहृतवित्तः।।
शतधा त्रस्तः तदपि न चेतः, दौर्वल्यं संजातम्।।
वृद्धत्वं चायातम्।।3।।

वदति समर्थः श्रृणोतु भ्रातः, स्वप्नं त्यज त्यज शोकम्।
जागृहि जागृहि भज हरिचरणं, त्यक्त्वा मिथ्या लोकम्।।
गतं यौवनं गतं शैशवं, प्रौढत्वं निर्यातम्।।
वृद्धत्वं चायातम्।।4।।।