Friday 8 March 2013

झुका देता हूँ सर अपना, जहाँ कुछ नूर पाता हूँ।........


झुका देता हूँ सर अपना, जहाँ कुछ नूर पाता हूँ।
मेरी मस्ती का ये आलम, नशे मे चूर पाता हूँ।।1।।

तेरे वुत के सिवा मुझको, जहाँ में बुत नही दिखता।
खिचा आता हूँ दर तक फिर , बङा मजबुर पाता हूँ।।2।।

मुझे सजदा नही आता , मगर दिल में तसल्ली है।
नजर में कान में हरदम, तुझे भरपूर पाता हूँ।।3।।

हवा का ये असर है या,  कि केवल भ्रम है ये मेरा।
कभी कदमों में गिरता हूँ, कभी मगरुर पाता हूँ ।।4।।

तुम्हारा भी तो मन होगा, कभी कुछ खेलने का क्यों।
करीबी का मजा मिलता,  कभी कुछ दूर पाता हूँ ।।5।।

भला या की बुरा कुछ भी, नही मालूम मुझको है।
तेरा त्र्यम्बक बताते सब, यही मशहूर पाता हूँ।।6।।
 











































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