Saturday 11 February 2012

गंगा की वर्तमान दशा


हे गंगे तुम क्यों सूखती जाती हो,
कृष्णचित्ता यमुना खत्म हो गयी, उसकी जगह काली होती जाती हो,
क्या तुम भी शोषण और कुपोषण की शिकार हो गयी हो,
या खाली सरकारी घोषणा की शिकार हो,
सुना तुम पर पानी की तरह पैसा बहाया है,
पर बूंद बूंद पानी को तरसाया है,
लगता है तुम भी लेटेस्ट फैशन की शिकार बन गयी हो,
 छरहरी काया के चक्कर में पड़ गयी,
पर सावधान ! खत्म होने से पहले कम होना ही पड़ता है ।
जो कम हो रहा है, वो धीरे धीरे खत्म हो रहा है ।
आह ! ये कृतघ्न नर, और नदियों की तरह तुझे भी निगल रहा है,
क्या तुम अब गंगा नहीं, रोते भगीरथ की अश्रुधारा हो,
या अखबारी नाम रूप के भूखे जीवों की जीवन धारा हो ।
ये दरिन्दा तेरे हाथ जोड़ता है, आरती उतारता है,
गटर की सारी गन्दगी तुममें डालता है ।
तेरी निर्मलता, अविरलता, अचिन्त्य शक्तिमत्ता का उपहास उड़ाता है,
सारी दुनिया कें तन मन की कालिख मिटाती हुई, सिमटती जाती है,
सुना है तेरी थाली का बचा कौर (निवाला) भी टिहरी ने चटकर लिया,
बदले में परोसा है, गन्दे नालों का आसव, फैक्ट्रियों का मल,
वाह !  मातृदेवो भव के आराधक भव्य भारतीय नर !
तू आरती उतारे जा, गन्दगी डाले जा तेरी वाह वाह में
इस क्षीणकाय वृद्धा माँ की आह कौन सुनेगा ,

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