Sunday 19 February 2012


राज भक्ति के भाव उमड़ते, गुण्डों के व्यवहारों में ।
हरियाली फाइल में दिखती, खुशहाली अखबारों में ।।
हरी रोशनी पार्क दिखाती, सड़कें डामर के जैसी ।
मानचित्र में अटक उन्नति, दिखती ये सपनों जैसी ।।
नहीं कही भी दुःख दीनता, पिछड़े भी परिवारों में ।।१।।
वादों का बरषाती मौसम, ये झूमे नेता बादल ।
गरज गरजकर तेज घूमते, ये हाथ जोड़ते निर्जल ।।
सज्जन सब ही विवस बने है, बैचेनी खुद्दारों में ।।२।।
         हाथी हाथ कमल नल साइकिल, तीर धेनू के झण्ड़े ।
         लोकतंत्र के गया तीर्थ में, चुनावी घाटों के पण्डें ।।
         तर्पण श्राद्ध तिलांजलि देते, पिण्डदान संग नारों में ।।३।।
सत्य न्याय का दम घुटता है, जनता का धन लुटता है ।
पानी बिजली सड़क नहीं है, हाय भरोसा उठता है ।
सड़कों में गड्डें है कहदे, या गड्डों में सड़के है,
भ्रष्टतंत्र में जीना मुश्किल, मन में शोले भड़के है
नेता मंत्री अपराधी से, फंसे आज व्यभिचारों में ।।४।।
         कहो कहाँ तक रोये रोना, ठग है पहरेदारों में
         अंगारों में आग नहीं है, धार नही तलवारों में
         राम रहीम भूल अपनापन, छिप जाते सलवारों में ।।५।।
चोर लुटेरे बईमान सब, घूम रहे है कारों में
कलमाड़ी राजा बंदी है, एसी कारागारों में
कर डाला है देश खोखला, घोटालें सरकारों में ।।६।।
         लोकतंत्र में लूट मची है, धन लूटता उपहारों में
         लाठी लेकर भैंस हाँक लो, सब चलता है यारों में
         निर्धन के राशन का गल्ला, बिक जाता बाजारों में ।।७।।
पांच बरस तक याद नहीं, गांव कभी जो आये हो
फाइल और पेट को भरकर, ये विकास कर पायें हो
समय व्यर्थ पूरा होता है, अभिनंदन आभारों में ।।८।।
         घाटे की औकात नहीं है, छू जाये नेता का दर
         त्राहि त्राहि जब दुनियां करती, भर जाता नेता का घर
         धन्धा सबसे बड़ा यहीं है, सब जग के व्यापारों में ।।९।।
सत्ता का लालच है कैसा, मनमोहन लाचारों में
तन मन में तो सत्य नहीं है,नहीं सत्य उद्गारों में
कैसे काम चले अब त्र्यम्बक, कपट छिपा व्यवहारों में ।।१०।। 

No comments:

Post a Comment