Why this kolaveri di
कोलावेरी डि कि धुन
पर पूरा हिंदुस्तान
थिरक रहा है,युवा तो पागलपन की हद तक दीवाना हो गया है इस
गीत का। सुना है वीन की तान पर नाग स्वयं को भूल जाता है,
उन्हें ये नहीं पता की क्यो झूमना है, कैसे झूमना है, सामने वाला क्या चाहता है, क्यो वीन बजा रहा है, बस तान छिड़ते ही शरीर विवस सा हो जाता है, ऐंठने
लगता है, अंगड़ाई लेने लगता है, संगीत
का एक अव्यक्त सा नशा उस विषैले विषधर को नशेड़ी की भांति अपने इशारों पर नचाता है| सर्प भी नाचता है, खूब नाचता है, अंजाम चाहे जो हो उसे नाचना है, वह नाचेगा, चाहे दांत तोड़ कर, विष निचोड़ कर, नसे मरोड़कर, कोई उसे सदा के लिए गुलाम क्यों न बना
ले, पर वह आदत से मजबूर है नाचेगा जरूर। वो खाना-पीना
सोना-जगना सुख-दुख अपना-पराया मित्र-शत्रु सब भूल जाएगा पर नाचेगा। हम सोच रहे थे
भारतीय युवा वर्ग को ऐसा क्या मिल गया जो वो नाच उठा, रुकने
का नाम नहीं लेता चाहे चित्र लु ट जाए चरित्र लुट जाए गति विचित्र हो जाए पर ये भी
नाच रहा है नाचेगा। कारण बहुत खोजा तो मिल भी गया। भारतीय मानव की रगों मे गुलामी
का रंग जो रक्त के साथ प्रवाहित है वह गुलामियत (दासता) का सुप्त भाव और प्रभाव
इसके स्वभाव का अभिन्न अंग बन चुका है, जब जब ये अपने मालिक
या मालकियत को देख, सूंघ, सुनभर लेता
है, बस दुम हिलाना शुरू कर देता है। पीठ पेट के बल लोट पोट
होने लगता है, कदम चूमने को मचल उठता है। ये दृश्य पूरे भारत
ने देखा था जब बिल क्लिंटन आए तब राजस्थान के एक गाँव की स्त्रियाँ उनके संग नाच
धन्यता का अनुभव कर कृतार्थ हो गयी, खबरदार ! भारतीय माताएँ कभी पर पुरुषों के साथ नहीं नाच सकती, वो दासता नाची, दासता के भाव ने दुम हिलाई, वे अंग्रेज़ हमारे मालिक है अङ्ग्रेज़ी हमारी मालकिन है,
कोलावेरी डी की वीन पर नाचने का रहस्य समझ में आ
गया - ये दासता का स्वाभाविक प्रवाह जो हमे विरासत में मिला है इससे मुक्त होना
उनके लिए नामुमकिन है, जिन्हें सोचने, समझने, विचारने, जगने, की फुर्सत नहीं, कला नहीं है,
ये गीत है क्या? पर युवावर्ग को मालकिन दिख गयी तो क्यों न
दुम हिलाई जाएँ, क्यों न चरण चूमने को मचला जाएँ, क्यों न स्वयं के अस्तित्व अस्मिता को भूलकर अङ्ग्रेज़ी की वीन की कोलावरी
तान पर थिरका झूमा जाएँ। सावधान!..... उस राष्ट्र का पतन कोई नहीं रोक सकता, जिस राष्ट्र की युवा शक्ति दिशाहीन, अपनी संस्कृति
से शून्य - स्वयं की शक्ति से अपरिचित, आत्मगौरव से रहित हो
रही हो।
किसी को ठेस लगी हो तो अच्छा है ठेस लगनी ही चाहिए, बिना ठेस लगे कभी परिवर्तन न होगा, तुलसी ध्रुव को
ठेस लगी तो वे अमर हो गए।
ये ठेस लगे, चोट ठिकाने पर ही
हो इसीलिए प्रयास है।
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