हैं भारती के भाल का
श्रृंगार बेटियां,
भगवान् का संसार को
उपहार बेटियां ।
सुमन सरीखी कोमल ये
नव किसलय जैसी मोहक,
सुखद धूप सर्दी की
हैं रात अंधेरी का दीपक,
सुख समृद्धि
सद्भावों का अवतार बेटियां ।
बेटों से ज्यादा
होती मातपिता की ये सेवक,
गम नदियों को सागरवत्
पी जाती बनकर भावुक,
दया सौख्य करूणा का
हैं उद्गार बेटियां ।
जो भी अच्छा पा जाती
खिला और को हरषाती,
त्याग तपस्या की
मूरत दीप शिखा की ये बाती,
बचपन से ही करती हैं
उपकार बेटियां ।
नहिं स्वयं का मान
तनिक ये चुप रहकर सह जाती,
खुद की खुशियां
सीमित कर खुशहाली घर में लाती,
जीवन भर करती सबका
सत्कार बेटियां ।
नहीं बेटियां होंगी
तो क्या ये संसार चलेगा,
बिना प्रकृति के
पुरूष मात्र का क्या संकल्प फलेगा,
अहो विधाता का अभिमत
साकार बेटियां ।
अरे मनुज इन कलियों
को खिल भी तो तू जाने दे,
जग के संचालक को ही
सबका भार उठाने दे,
निज नसीब से विकसित
ये ना भार बेटियां ।
ये साधना शंकर की
हरि के जग का ये विस्तार,
शक्ती की अविरल धारा
करती सृष्टि का संचार,
परम्परा का गरिमामय
व्यवहार बेटियां ।
सदा त्यागने सुख
सुविधा यज्ञाहूती सी पावन,
मातपिता भ्राता कुल
में लायें खुशियों का सावन,
करती है जगती भर का
उद्धार बेटियां ।
पापीजन के पाप दहन
को जलता अंगार बेटियां ।
एक अकेली होकर भी सब
पर बलिहार बेटियां ।
करने को उत्सर्ग
स्वयं रहती है तैयार बेटियां ।
परिजन के गम का
मधुरिम उपचार बेटियां ।
त्र्यम्बक के
संकल्पों का आधार बेटियां ।
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