Saturday 18 February 2012

हैं भारती के भाल का श्रृंगार बेटियां,



हैं भारती के भाल का श्रृंगार बेटियां,
भगवान् का संसार को उपहार बेटियां ।

सुमन सरीखी कोमल ये नव किसलय जैसी मोहक,
सुखद धूप सर्दी की हैं रात अंधेरी का दीपक,
सुख समृद्धि सद्भावों का अवतार बेटियां ।

बेटों से ज्यादा होती मातपिता की ये सेवक,
गम नदियों को सागरवत् पी जाती बनकर भावुक,
दया सौख्य करूणा का हैं उद्गार बेटियां ।

जो भी अच्छा पा जाती खिला और को हरषाती,
त्याग तपस्या की मूरत दीप शिखा की ये बाती,
बचपन से ही करती हैं उपकार बेटियां ।

नहिं स्वयं का मान तनिक ये चुप रहकर सह जाती,
खुद की खुशियां सीमित कर खुशहाली घर में लाती,
जीवन भर करती सबका सत्कार बेटियां ।

नहीं बेटियां होंगी तो क्या ये संसार चलेगा,
बिना प्रकृति के पुरूष मात्र का क्या संकल्प फलेगा,
अहो विधाता का अभिमत साकार बेटियां ।

अरे मनुज इन कलियों को खिल भी तो तू जाने दे,
जग के संचालक को ही सबका भार उठाने दे,
निज नसीब से विकसित ये ना भार बेटियां ।

ये साधना शंकर की हरि के जग का ये विस्तार,
शक्ती की अविरल धारा करती सृष्टि का संचार,
परम्परा का गरिमामय व्यवहार बेटियां ।

सदा त्यागने सुख सुविधा यज्ञाहूती सी पावन,
मातपिता भ्राता कुल में लायें खुशियों का सावन,
करती है जगती भर का उद्धार बेटियां ।

पापीजन के पाप दहन को जलता अंगार बेटियां ।
एक अकेली होकर भी सब पर बलिहार बेटियां ।
करने को उत्सर्ग स्वयं रहती है तैयार बेटियां ।
परिजन के गम का मधुरिम उपचार बेटियां ।
त्र्यम्बक के संकल्पों का आधार बेटियां ।

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