Wednesday 15 February 2012

गौ


                                  गौ

गोवंश रक्त से सनी भूमि, सब और निराशा लाती ।
सौहार्द हीन सा मनुज यहाँ, है तड़फ उठी अब छाती ।।
              कैसे हम हिन्दु हैं कह दें, कैसे कह दें भारत है,
              कैसे माने देश कृष्ण का, कैसा ये परमारथ है ।।
आज उगलती आग दिशायें, ये नदियाँ खून बहाती है ।।१।।
व्रजभूमि है धन्य जहाँ पर, ब्रह्म स्वयं सेवा करता,
पग कंटक निर्भीक पदाती, वो नंगे पाँव विचरता ।।
दुर्दशा गाय की देख देख, ये नजरें है शरमाती ।।२।।
              हो गया मलिन ये मनुज अरे, जो बस खाता सोता है ।
              मानवता की परम्परा का, ये भार व्यर्थ ढोता है ।।  
सुप्त पड़ी इस युवा शक्ति को, है करुणापूरित पाती ।।३।।
अरे चेतना के संवाहक, विश्व पटल के राजहंस,
              कब तक दर्शक मूक रहोगे, सिसक रहा ये गाय वंश ।
प्राण यदि तन में है तेरे, तब क्यों गो मिटती जाती ।।४।।
धन यौवन जीवन पद गरिमा, है सभी निरर्थक तब तक,
              दुःख भोगती भारत भर में, ये भक्तवत्सला जब तक ।
नहीं चाहती कुछ विशेष यें, गौ घास मात्र हैं खाती ।।५।।
सत्ता पर विश्वास न करना, धर्महीन हो गयी पतित,
              सत्य हीन मदमत्त जनों के, कर्मों से श्री कृष्ण व्यथित ।
इन्हें चाहिए कुर्सी दौलत, ना गौ की याद सताती ।।६।।
अरे उठो राणा के वंशज, वीर शिवाजी के यशधर ।
              गुरु गोविन्द की आन तुम्हें, तुम बनो घोर प्रलयंकर ।
गोहन्ता का शीश काटकर, झूमों भैरव की भाँति ।।७।।
नहीं अमर जीवन यौवन, मरना सबकों है निश्चित,
              गौरक्षा कर बनो यशस्वी, तुम सच्चे वीर विपश्चित् ।
अरे उतारो कर्ज गाय का, गौ माता आज बुलाती ।।८।।
गो हत्यारे से बढकर है, गो-धन को खाने वाला,
              वो नीच हिन्दु का अंश नही, जो करता हो घोटाला ।
जागो अब तो बहुत हो चुका, गौ अश्रु नित बरषाती ।।९।।
सब देवों का देवालय है, ये भुक्ति मुक्ति सँग लाती,
              माता बन कर सुधा सरिस, गौ सबको दूध पिलाती ।
तीरथ सब इसके चरणों में, ये सेवा से हरषाती ।।१०।।
नहीं कटे अब कहीं गाय ये, नही तड़फती हो भूखी,
              क्या जीने का अर्थ बचेगा, यदि माँ कमजोरी से सूखी ।
आओ त्र्यम्बक जोत जलादे, हम बनकर दीपक बाती ।।११।।

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