जगे हो आप मधुसूदन,मुझे किस बात की चिन्ता ।
तुम्हारे हाथ जीवन रथ,करूं किस बात की
चिन्ता।।
जमाना
चाहे दुश्मन हो,डगर कांटों भरी चाहे।
मुझे
न फिक्र बिल्कुल है,शरों की हो झङी चाहे।।
तुम्हीं को अब तो करनी है,मेरे विश्वास की चिन्ता।।1।।
मुझे ना द्रोण से भय है,मुझे ना भीष्म से
भय है।
जहां
पर तुम कृपा करते,वहां हर हाल में जय है।।
तुम्हीं को सौंप दी मैने ,मेरे आघात की चिन्ता।।2।।
कर्ण हो शल्य हो चाहे,साथ में आपके रहते।
सभी को मार डालुंगा,ऋषी मुनि सिद्ध ये
कहते ।।
गोद में हूं तुम्हें करनी,मेरे हालात की चिन्ता।।3।।
हार अरु जीत के संग में,बुद्धि मन गात की
चिन्ता।
तुम्हीं पर छोङ दी मैंने ,तात अरु मात की
चिन्ता।।
तुम्हें ही अब तो करनी है,मेरी दिन रात की चिन्ता।।4।।
कङी हो धूप सूरज की,भले ही शीत की आंधी।
तुम्हें ही अब तो करनी है,मेरी दिन रात की चिन्ता।।4।।
कङी हो धूप सूरज की,भले ही शीत की आंधी।
दया की छांव तेरी है,कटे सब आधि अरु व्याधी।।
तुम्हारे बल पै सोता हूं,तुम्हेंसब बात की चिन्ता।।5।।
तुम्हारे बल पै सोता हूं,तुम्हेंसब बात की चिन्ता।।5।।
मुझे सब याद है मोहन,मेरी मां का दुखी
जीवन।
सभा में खीचना साङी,द्रोपदी का करुण
क्रन्दन।।
तुम्हारे
हाथ में प्यारे,मेरे जज्बात की चिन्ता।।6।।
कर्ण की गालियां चुभती,वनों के गम भी है ताजी ।
कर्ण की गालियां चुभती,वनों के गम भी है ताजी ।
दुखों का भार ढोकर भी,तेरी मर्जी में हूं
राजी ।।
शरण में आ गया त्र्यम्बक,करो तुम दास की
चिन्ता।।7।।
No comments:
Post a Comment