Saturday 3 March 2012

निंदक हितकारी

अहो मुखर निंदक भी तो हितकारी हैं,
घटा रहे हैं पाप बङे उपकारी हैं।
अनुचित कर्म बने जो हमसे,बिना भोग वो काट रहे।
इतना कोमल हृदय है उनका,दुष्कृत मेरे बांट रहे।।
               कटुक करेला जैसे पर गुणकारी हैं।।1।।
सबके चहरे चमकाता पर,जूना खुद गंदा रहता।
जूने को आदर्श बनाकर,मन के मल को ये गहता।।
              नहीं विरोधी सचमुच ये सहकारी है।।2।।
मन जब कभी विकारयुक्त हो,कुत्सित पथपर जाता है।
तभी सजग सहचर की भांति,ताने मार जगाता है ।।
              ये रक्षक हैं हम इनके आभारी हैं ।।3।।
सौ सौ साल जिये ये प्रियवर,नीरोगी सुखधाम चरें।
अपने पुण्य सभी औरों को , ऐसे ही प्रतिदान करें।।
              मंत्रमयी सी प्यारी इनकी गारी हैं ।।4।।
सदा इन्हें सम्मान पूर्वक,महल बनाकर पास रखें।
बिना सलिल अरु साबुन के ही,शुचिता का हम स्वाद चखें।।
              पुण्य लुटाते ये अद्भुत व्यापारी हैं ।।5।।
निंद्य गती के अवरोधक ये,अहंकार के बाधक हैं।
जग से मन को उदासीन कर,भक्ति पंथ के साधक हैं।।
              पावक हैं ये प्रतिफल में शुभकारी हैं।।6।।
सावधान प्रतिफल करते हैं,दर्पणवत् सच्चाई कह।
दोषरहित जीवन हेतू ही, प्रेरित हो अच्छाई कह ।।
             फिर क्यों डरते इनसे नरनारी हैं।।7।।
अरे पिता की गोदी से हट,वचन वाण जो नहीं झिले।
ध्रुव का मान सुरुचि पर निर्भर,जिससे श्रीभगवान मिले।।
              हाथ जोङ लो जिसके ये अधिकारी हैं।।8।।
माता केकई ने रघुवर से,अवध मात्र का राज लिया।
बदले में वनवास बहाने , जगती का सम्राट् किया ।।
   निंदा ही तो इनकी पूजा सारी है।।9।।
काट रहे हैं समय विचारे, समय इन्हें ही काट रहा।
ये बांट रहे हैं मानवता को,समय इन्हें ही बांट रहा।।
              दीन विचारे इनकी ये लाचारी है।।10।।
ये राह रोकते बनकर शत्रु ,पर मजबूत बनाते हैं।
आत्म परीक्षा का मौका दे ,दृढता रंग चढाते हैं।।
जो कमजोर बने मन के हैं,वे ही तो घबराते हैं।
जिनकी रगरग में शुचिता है,वे अविचल शुभ पाते है।।
              सदा सुनिश्चय से ही निंदा हारी है।।11।।

No comments:

Post a Comment