राष्ट्र रक्त मांगता
सुशान्ति हेतु हे मुने,क्रान्ति के बिना कभी न शान्ति लोक में सुनी।
नीति शक्ति की सदा
सहायता है चाहती,शक्ति के बिना न प्रीति आरती उतारती।।1।।
हाथ खोल दो उठो मशाल
क्रान्ति की बनो,सामने दिनेश हो निशेश या निशीथ हो।
आंधियां चले कहीं प्रवाह
राह रोकता , सांस से समुद्र को सुखा सको अगस्त्य हो।।2।।
भीति से भयंकरी न दीनता
सुनी कहीं , वीरता यशस्विनी तरंगिणी सदा रही।
सन्त भाव ठीक है विरक्त
मण्डली रहे,क्रूरता कलंक को समर्थ व्यर्थ क्यों सहे।।3।।
हिन्दुओ उठो अभी,न मोह न
विषाद हो,वज्र सा विशाल वक्ष धीर सिंहनाद हो।
गाय ना कटे कहीं न भूख
में पङी रहे,सभ्यता हमारि द्वार नन्दिनी खङी रहे।।4।।
जिन्दगी न खाक हो संभाल
लो स्वयं खिलो,आलसी वयार राह रोकती चलो हिलो।
क्षम्य भाव ठीक है
परन्तु शक्ति हो तभी,शक्ति हीन मानवी क्षमा नहीं सही कभी।।5।।
धान्य धैर्य धर्म हो
धनार्थ दिव्य कर्म हो,सन्त विप्र के कृपा प्रसाद का सुवर्म हो।
शौर्य सत्य से सजा
सुवृत्त चित्त नर्म हो,गर्व तो करो कभी न एकमात्र चर्म हो।।6।।
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