Saturday 3 March 2012

संस्कृतम्


                                                                                                                  
                            संस्कृत भाषा
राष्ट्र भाषा भवेत् भारते संस्कृतम्,विश्वभाषा भवेत् भूतले संस्कृतम्।
लोकभाषा च लोकेषु वै संस्कृतम्,राज भाषा च राज्येषु वै सस्कृतम्।।
                       लोक भाषा च लोकेषु वै संस्कृतम्।।1।।
सृष्टि काले प्रभाते यदा केवलं,मातृ भाषा बभूव प्रियम् संस्कृतम्।
नैव भाषा तदानीमभूत् भूतले,प्राणिमात्रस्य भाषा अतः संस्कृतम्।।2।।
वैदिकं संस्कृतं लौकिकं संस्कृतं,अद्वयं द्वैत भावेन संलभ्यते।
वैदिके पात्रता-पात्रता-पेक्षिता, लौकिकं लोकभाषेति संसिद्ध्यते।।3।।
आदि राज्ञो मनोःमानवी संहिता,संस्कृतेनैव साकारतां सागता।
मानवीया तु भाषा स्वतःसंस्कृतं,आद्यतःसंस्कृतं अंततःसंस्कृतम्।।4।।
भोजराजस्य राज्ये मुदा सर्वदा,कालिदासादि गोपान्त सर्वे जनाः।
शास्त्रवादे विवादे विहारेषु वै,संस्कृतं भाषमाणाः भवन्तिस्म वै।।5।।
वेदवेदान्तयोर्वाक् यथा संस्कृतं,आद्यकाव्यस्य भाषा तथा संस्कृतम्।
काम सूत्रादि मोक्षान्त सर्वाःकथाःसंस्कृतस्यैव कीर्तेःप्रसारे रताः।।6।।
संस्कृतस्य प्रचारो भवेत् भूतले,संस्कृतस्य प्रसारो भवेत् भूतले।
धर्ममूला च सर्वेषु सद्भावना,संस्कृतेनैव शक्या सुसंरक्षिता।।7
(मानवीया विशाला सुहृत् भावना,संस्कृतेनैव शक्या सुसंरक्षिता)
संस्कृतेःसभ्यतायाश्च संरक्षणं।ज्ञान वैराग्ययोश्चापि संवर्धनम्।
विश्वशान्ते-रुपायोपि संस्मर्यतां,संस्कृतेनैव संभातितो भूतले।।8।।
भौतिकी प्रोन्नतिःधार्मिका चोन्नतिः,आणवीयास्मदीया तथा ह्युन्नतिः।
आत्मरक्षा तथा सौख्य दीक्षा कला,शाश्त्रशिक्षा तथा शश्त्रशिक्षा विधा।।
संस्कृतेनैव सिद्धाः समस्ताः क्रियाः,यंत्र मंत्रेषु तंत्रेषु वै संस्कृतम्।।9।।




                                    

No comments:

Post a Comment