Thursday 1 March 2012


मुझे अब याद आता है,मेरा खुशियों भरा बचपन ।
वो फूलों से सजी क्यारी,तितलियों से भरा उपवन।।
लङा करते थे पलभर में,मिलन पलभर में होता था,
झटककर दूर सब आफत,सदा निश्चिन्त सोता था।
न थी अपमान की चिन्ता,न झंझट से भरा जीवन।।1।।
बङा मासूम सा चहरा,बेइन्तहा सोख व चञ्चल,
चहकता था परिन्दों सा,नदी की लहर सा कलकल।
अजनबी सा जमाने में,खिले फूलों सा जगमग मन।।2।।
न था दुश्मन कोइ अपना,नहीं कुछ खोने का भय था,
चाह यश की न कोइ थी,नहीं जीवन में अब अभिऩय था।
छिपाने को नहीं कुछ था,खिली ज्यों फूल पर शवनम।।3।।
वही मिट्टी घरोंदा फिर ,वही फिर धूल में सनना,
नदी तट खेलना दिन भर,मधुर मोरों का स्वर सुनना।
आंव की छांव को तङफा,आज करता है मन क्रन्दन।।4।।
लगे अब रोग सौ सौ हैं,विषय विष से विषैला तन
कहां बचपन की पावनता,कहां दुर्भाव मैला मन।
छोङकर वासना अपनी,भरें खुशियों से फिर दामन।।5।।
न था गन जिन्दगी में तब,गर्व की थी न तब छाया,
खेलना गुड्डा गुङियों का,गेंद बल्ला भी अपनाया।
सिपाही चोर की क्रीङा,वही झगङा वही अनबन।।6।।
वही वर्षा का मौसम हो,वही फिर भीगना दिनभर,
डाटना प्यार में मां का,हाथ रखना मॆरे सिर पर।
गरजना बादलों का सुन,मचल उठना करूं दर्शन।।7।।
नहीं था अपना कुछ भी तो,लगे संसार अपना सा,
कहां वो खो गया जीवन,जो बीता एक सपना सा।
करें क्या अब बता त्र्यम्बक,मिले फिर वो ही अनापन।।8।।


No comments:

Post a Comment