अजनबी आ गया बनकर, मेरा हमदर्द जाने क्यों,
तसल्ली दिल को देने को, प्यार अपना जताने क्यों।।1।।
मुझे अफसोस मन में है,शिकायत भी जरा सी
है,
मुनासिब पर नहीं कहना,जिन्दगी खुद तरासी है।
चला आया कोई मेरा,मुझे हस्ती बताने क्यों।।2।।
दिखाकरके बङे सपने,बो गायब हो गया ऐसे,
सुबह की धूप से शबनम सिमट जाती स्वयं जैसे।
छिपा है चांद बादल में,किसी का दिल जलाने
क्यों।।3।।
नदी को ही समुन्दर की जरूरत हो नहीं ऐसा,
समुन्दर भी मचलता है, मिलन को प्रेमियों जैसा।
मेघ बनकर वरषता है, आग दिल की बुझाने को।।4।।
पता मुझको भी सच तो है,प्यार में है अधूरापन,
वर्ण पहला ही जब आधा,कहां से दे ये पूरापन।
बङा दमदार फन है ये,बना केवल रुलाने को।।5।।
राह सबकी जुदा होती,मंजिलें भी जुदा होती,
तरीके भी जुदा होते,चाहतें भी जुदा होती।
जुदा सब हैं सभी से तो,मिलन फिर क्यों सताने
को।।6।।
न धरती से गगन मिलता,न सूरज का निशा से मन,
कमल ना चांद से खिलता,भीख से ना भरे दामन।
अगर झुकना नहीं त्र्यम्बक,तो फिर आया मनाने
क्यों।।7।।
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