मां
त्रिलोके नास्ति तत्
साम्यं,तथा चैवेश्वरः कश्चित्।
यथा माता कृपा-मूर्तिः,भूतले संचरन्ति या।।1
भूतल पर विचरती हुई कृपा की मूर्ति
मां के जैसा तींनों लोकों में
कोई ईश्वर नहीं,
प्रगाढं भाव
सौन्दर्यं,सदा त्यागाय सन्नद्धा। समेषां
पालनं कर्तुं,मनसि यस्याः परा श्रद्धा।।2
सदा उत्सर्ग के लिए तैयार,सभी का पालन करने की मन में परम भावना लिये,प्रगाढ भावों का सौन्दर्य है
मां।।
न हर्षःस्वार्थ हेतोःहि,
न शोकःस्वार्थ हेतोःहि।
सदा संतान हेतोः हि प्रसन्ना यापि खिन्ना वा।।3 अपने लिये न हर्ष न
शोक, जो केवल संतान के कारण ही खिन्न और प्रसन्न
होती है,अर्थात् सन्तान खुश तो मां खुश,संतान दुखी तो मां दुखी।।
न भोक्तुं लालसा यस्याः,परार्थं
जीवनं पूर्णं, व्रतं वापि
तपश्चर्या,परेषां वै कृते नित्यम्।।4।।
अपने लिये कभी कुछ न चाहने वाली, परमार्थ पूर्ण,व्रत या अन्य कोई तप
भी होगा तो वो भी दूसरों के ही लिये।।(शायद मां ही ऐसी
होगी दुनियां में जिसने आज तक अपने लिये कभी कुछ
न मांगा होगा,उपासना करेगी तो कभी पुत्र के लिये, कभी पति
के लिये, कभी पिता के लिये,कभी भाई के लिये,आप देख ले झोली
भी फैलायी होगी तो औरों के लिये ही,अपने लिये कभी कुछ नहीं )
इयं यज्ञः इयं पूजा,इयं
सिद्धिरियं साध्या।
परेशस्य प्रभामयी मा ,सदा
सौम्या च सरला या।।5
सदा सौम्य एवं सरल परमात्मा की प्रभा स्वरूपा मां ही यज्ञ, पूजा, सिद्धि,
तथा साध्य है।।
न सृष्टौ
काचिदन्यास्ति,सदोषे बालके प्रीतिः। सदा वात्सल्य
भावेन,दुखं सोढ्वापि संहृष्टा।।6
दुनियां में मां के अलावा और कौन है, जो दोष होने पर भी बालक पर प्रेम ही
करें, सौ सौ
दुख सहकर भी प्रसन्नता पूर्वक सदा वात्सल्य वरषाती रहे।।
धरापि संभवेत्
क्रुद्धा,नगोपि संचरेत् केन्द्रात्।
वरं सिन्धुः भवेत् शुष्कः,कदापि माता नो रुष्टा।।7 कदाचित्
पृथ्वी क्रुद्ध हो जाये,पर्वत अपने केन्द्र से विचलित हो जाये,भले सागर सूख जाये,परन्तु मां कभी
रुष्ट नहीं हो सकती,(क्वचिदपि कुमाता न भवति)हित भाव को मन में रखकर कदाचित् नाराज
होकर डाट दे पीट भी दे,परन्तु अकेले में बैठकर रो लेगी,।।
पिता भ्राता सुतो
बन्धुः,सखा सर्वेश्वरो माता।
धनं विद्या यशः सौख्यं,कथय किं नास्ति भो माता।।8
पिता,भ्राता,पुत्र,बन्धु,सखा,सर्वेश्वर,धन,विद्या,यश, सौख्य,सबकुछ मां ही
है,विचार
करें माता के अतिरिक्त कुछ और है क्या,मां शब्द संसार का सबसे मधुर शब्द है ,इतना माधुर्य
इतनी कृपा,इतना समर्पण,कहीं न मिलेगा,सोचो मां न होती तो क्या होता,क्या हम आप
होते,क्या ऋषि मुनि सिद्ध देव होते,क्या ये दुनियां होती,ये सकल प्रपंच मां के
संकल्पों का ही विस्तार है,हम तो डंके की चोट कहते हैं,यदि मां न होती तो वह
निराकार परमात्मा साकार न होता,आप के मन में शंका हो तो जान लीजिये,निर्गुण
निराकार ब्रह्म को सगुण साकार होने के लिये, पिता की आवश्यकता नहीं परन्तु मां की
है,।।भगवान भी कहते हैं मैं अपने भक्त की रक्षा ऐसे करता हूं जैसे मां अपने बालक
की करती है,(करहुं सदा तिन कै रखबारी,जिमि बालक राखहि महतारी)
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