गोविन्दांघ्रिभुवां विधेःकरगतां
शम्भोःसटाशोभितां,
भक्तानां हृदि राजतां कलिमल प्रध्वंसिनीं शुद्धिदाम्।
भक्ति ज्ञान विराग शान्ति सहितां सौभाग्य सिद्धिप्रदां,
वन्दे तां भुवनेश्वरीं त्रिपथगां गंगां जगन्मातरम्।।1।। भगवान्
विष्णु के चरणकमलों से प्रादुर्भूत,पितामह ब्रह्मा के करस्थ कमण्डल में विराजित,
सदाशिव के जटाजूट में शोभित, भक्तजनों के हृदय में विराजमान,कलि के मलों को नष्ट
करके शुद्धि प्रदान करने वाली,भक्ति ज्ञान वैराग्य एवं शान्ति से य़ुक्त सौभाग्य
परिपूरित सिद्धि प्रदान करने वाली,सकल भुवन की अधीश्वरी त्रिपथगा उन जगन्माता गंगा
को मैं नमन करता हूं।
भक्तानां भवभीतिभंजनपरां भव्यात्म
भावप्रदां,
भेदाभेद विवर्जितां भवकलां सौभाग्य संवर्धिनीम्।
भूत्याभूषितभूतनाथशिरषि क्रीडारतां कामदां,वन्दे तां...........। ।2
भक्तों की सांसारिक भीतियों का भंजन करने में निरत,भव्य आत्म भाव प्रदान
करने वाली,समस्त भेदों तथा अभेदों से परे सदाशिव की कला,सौभाग्य का संवर्धन करने वाली,भस्म
विभूषित भूतेश्वर सदाशिव के मस्तक पर खेलने वाली,सभी कामनाओं को पूर्ण करने
वाली,सकल भुवन की अधीश्वरी मां गंगा को मैं नमन करता हूं।।
कारुण्यद्रववाहिनीं करुणया कालस्य
कं मर्दिनीं,
कुण्ठाग्रस्त जनान् विलोक्य
सहसा वात्सल्यभावैर्भराम्।
कामक्रोधविलासितादिहरणे दिव्यौषधीं निर्मलां,वन्दे तां............।।3।। करुणापरिपूरित
हो करुणाधारा के रूप में प्रवाहित होने वाली,काल के मान का मर्दन करने वाली,
कुण्ठित जनों को सहसा देखकर वात्सल्य से भरी ङुई,भक्त जनों के काम क्रोध विलासिता
आदि महारोगो को नष्ट करने के लिये, निर्मल दिव्यौषधि रूपा मां गंगा को मैं नमन
करता हूं।
दौर्भाग्यादि समस्त दुख दलनं
यस्याःस्वभावं स्मृतं,
दीनानां परिपालनं त्रिजगतां तत्सौख्य संपादनम्।
दोषादोषनिवारणैक तरणिं साद्गुण्य संवर्धिकां,वन्दे तां.........।।4।। प्राणियों के दौर्भाग्य आदि
समस्त दुखों का दलन करना जिनका स्वभाव कहा गया है,तथा तीनों लोकों के दीन जनों
परिपालन कर उनके जीवन में सौख्य का संपादन करने वाली, दोष रूपी दुर्गम रात्रि के
गहन अंधकार को मिटाने के लिये जो सूर्य के समान
हैं,तथा समस्त सद्गुणों का संवर्धन करने वाली मां गंगा को मैं नमन करता हूं।।
साक्षात्साधुजनैःसुसेवितपदां सारप्रदां
शांभवीं,
सिद्धानामवदात सिद्धिमतुलां सम्पत्करां शास्वतीम्। शुद्धोदेन च शापशोधनपरां
सत्याःसपत्नीं शिवां,
वन्दे तां भुवनेश्वरीं त्रिपथगां गंगां जगन्मातरम्।।5।। साधुजनों के द्वारा साक्षात् सेवित
चरणकमलों वाली,सारतत्व प्रदान करने वाली,शंकरप्रिया,सिद्धों तक को अतुलनीय सिद्धि
प्रदान करने वाली,शास्वत सम्पत्ति प्रदान करने वाली,अपने पावनतम निर्मल जल के
द्वारा भक्तों के शाप का शोधन करने वाली,भगवती सती की सपत्नी,अकारण कल्याण कारिणी
मां गंगा को मैं नमन करता हूं।।
हरहरगंगे....... समर्थश्री
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