श्रीदाम्ना विपराजितोति-विकलःस्कन्धाधिरूढेन
वै,
श्रान्तःस्वेद कणैर्विभासित-मुखो-रक्ताभ-नेत्रान्वितः।
राधादृष्टिगतःपराभव भयात जेतुं प्रपंचे रतः, क्रीडासक्तमनो
मनोहर हरिः मे मानसे राजताम्।।
खेल में भगवान श्रीकृष्ण श्रीदामा से हार गये,परिणामतः पूर्व निर्धारित
नियमानुसार श्रीदामा को अपनी पीठ पर बिठाकर लक्ष्य तक ले जा रहे हैं,(चड्ढु खिलाना
कहते हैं व्रज में)पसीने की बूंदों से मुखकमल शोभित हो रहा है,थकावट से वेचैन
हैं,आंखें लाल हो गयी हैं,(इस बात से तो कोई अन्तर नहीं परन्तु)श्री राधा जी ये सब देख रही हैं,ये बात जैसे ही लाला को
पता चली,बस लाला की लीला शुरु हो गयी,करने लगे झगङा, अपनी जीत घोषित करने लगे,श्रीदामा
भी कब झुकने वाले थे बोले लाला तू बङे बाप कौ होयगो तो अपने घऱ कू होयगो,तू भगवान
भी है तो कहा है गयौ,हारौ है तो चड्ढु तो दैनी परेगी,खेलत में को काकौ गुसैंया (पर
भाई प्रियतमा के आगे आसानी से हार कौन स्वीकार करे)इस खेल में डूबे मनमोहक श्री
कृष्ण मेरे मन में विराजित हो जायें।।
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