क्षीराब्धौ वासो हरेः प्रियतमा-सेवारता-श्रीरमा,
कैलाशं श्रयते शिवः शिवतमा दास्ये रताद्रीशजा।
को हेतुः श्वसुरालये भगवतो-रासक्ति-रादृश्यते,
इत्थं भावभरो विचिन्त्य यतिराट् ब्राह्मं गतो नारदः।।लोक मंगल निरत
श्रीनारद जी ब्रह्म लोक जाते हुये सोच रहे हैं,भगवान् विष्णु क्षीरसागर में रहते
हैं उनकी प्रियतमा सेवा करती रहती हैं,भगवान सदाशिव कैलाश पर्वत पर रहते हैं,उनकी
सेवा में कल्याण कारिणी मां पार्वती रहती
हैं(अद्रीशजा,अद्रिणां=पर्वतानां,ईशः=स्वामी,इति
अद्रीशः,तस्य अद्रीशस्य गृहे जायते इति अद्रीशजा=पार्वती) क्या कारण है इन दोंनों को श्वसुरालय(ससुराल)
इतना प्यारा क्यों लगता है,सासु तीरथ ससुरा तीरथ........दुनिया के सब तीरथ
झूठे,चारो धाम...............है।।शायद बाबाजी(श्रीनारदजी) के मन
में यही से विवाह करने का भाव उदय हुआ हो।।
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