भ्रष्टाचार
भावुकाःनागराःपीडिताःलुण्ठिताः,त्रास
निर्णाश हेतुं न जानन्ति ते।
भ्रष्टता पूतना भारतं केशवं,हन्तुकामा समायाति छद्मश्रिया।।1।। भावुक नागरिक ठगे जाने से पीडित हैं,परन्तु वे अपने दुख की
निवृत्ति का उपाय नहीं जानते,भ्रष्टता रूपिणी पूतना भारत रूपी श्रीकृष्ण को मारने
की कामना से कृत्रिम सौंदर्य,माधुर्य एवं औदार्य का कपट वेष बनाकर आ गयी है।
भारते भो समे शासकाःसेवकाः,राजदूता धनाध्यक्ष सेनाधिपाः।
सर्वकारस्य कार्यालये
तस्कराः,सन्ति पापाश्च ते वै हिरण्यप्रियाः।।2।।
अरे
बन्धुओ,आज पूरे भारत में सभी
शासक,सेवक,विदेशमंत्री,वित्तमंत्री,रक्षामंत्री,गृहमंत्री,कहां तक कहें,सभी सरकारी
कार्यालयों में पापबुद्धि वाले धनलोलुप चोर ही चोर भरे पङे हैं।
सांसदाःमन्त्रिणः प्रान्तपीठाधिपाः,मूल्यहीनाश्च ते धर्मविध्वंसकाः।
मानवीया समेषां न संवेदना,वित्त-लोभान्धकूपे मृताःते ह्रिया।।3।। सांसद,मंत्री,मुख्यमंत्री,सभी सनातन धर्म विध्वंसक एवं मूल्य हीन हो चुके
हैं,सभी की मानवीय संवेदनायें मिट चुकी हैं,वे धन पिपासा रूपी अन्धे कूप में लज्जा
वश डूबकर मृतप्राय हो गये हैं। शासकाःशोषकाः
शोषणे तत्पराः, राजनीतिःसमुत्कोच संवर्धिका। खेल
तन्त्रस्य तन्त्रं विकारान्वितं,राष्ट्ररक्षाकराणां सदा दुष्क्रिया।।4।। शासक अब शोषक बनककर
जनता का शोषण करने में लगे हैं,राजनीति भी रिश्बतखोरी का पोषण एवं संवर्धन करने
में लगी है,क्या बतायें खेल मंत्रालय में भी घोटालों का खेल चल रहा है, राष्ट्र की
रक्षा का दायित्व जिनके हाथों में है, वे भी असामाजिक कार्यों में लगे हैं। कर्मसंचारिणःमन्दकार्याःभटाः,शिक्षकाणां
प्रमादेन छात्राःहताः।
संस्कृताचार पीयूष शून्याःद्विजाः,दुर्हृदास्ते मृताःकर्महीनाःभिया।।5।। कर्मचारी,सेवकादि भी
आलस्य के वशीभूत हो काम चोर हो गये हैं,शिक्षकों के प्रमाद से छात्रों को भविष्य
चौपट हो रहा है,संस्कृति के रक्षक द्विज भी संस्कृत से शून्य,सदाचरण से शून्य,अतएव
दिव्य भाव से रहित हो दीनप्राय हो गये है,स्वधर्म को छोङ,अन्य कर्म में लगे विकृत
चित्त वाले वे अकर्मण्य होने से भय के मारे मृतप्राय से हो रहे हैं।। समर्थश्री...
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