Thursday 3 May 2012




वद वद-संस्कृतं,मनुजरे,वचसा-सततं,
पठ पठ-संस्कृतं,सुजनरे,मनसा-सततम्।
लिख लिख-संस्कृतं,सकलपाप-धुताशयदं,
शृणुशृणु-संस्कृतं,श्रवणरंध्र-गतंमधुरम्।।
हे मानव,तुम वाणी से निरन्तर संस्कृत बोलो,
हे सुजन,तुम मन से निरंतर संस्कृत पढो,
सकल पापों का शमन कर पवित्र अन्तःकरण देने वाली संस्कृत को लिखो, कर्ण कुहरों में प्रविष्ट  मधुरतम संस्कृत को निरंतर सुनो।।
नर्कुट छंद है,लोक गीत के समान गाया जाता है,
वेद स्तुति इसी छंद में है,
आज माता सीता का अवतरण दिवस है,,,सबको शुभकामनाओं के साथ माता सीता का चरण वंदन.
त्रिभुवन-मोहिनी,भगवती-वसुधातनुजा,
जनकसुता-शिवा ,सकलमंगल-मूलरमा।
दनुजकुला-धिपे, न्द्रकुलनाशकरी कमला,
जयजय मोक्षदा,विभवदा रघुनाथरता।।
त्रिभुवन को मोहित करने वाली,पृथ्वी पुत्री,भगवती सीता,कल्याण कारिणी जनकसुता,सकल मंगल प्रदान करने वाली रमा,राक्षसेन्द्र रावण के कुल का नाश करने वाली लक्ष्मी,भोग एवं मोक्ष देने वाली राघवेन्द्र श्री राम की परम प्रियतमा माता सीता की जय जयकार हो।   नर्कुट छंद है



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