श्रीकृष्ण
बोधाष्टकम्
कृष्णभक्तो मृदुःकृष्णभावे
रतः,कृष्णलीलान्वितःकृष्णजायाश्रितः*।
कृष्णधाम्न्युद्भवःकृष्णभक्तैर्वृतो,वन्द्यवन्द्यो यतिःकृष्णबोधाश्रमः।।1
कृष्ण भाव में डूबे रहने वाले,भावुक कृष्णभक्त,कृष्णलीलाओं के जुङे
हुए,यमुना के तट पर रहने वाले,मथुरा के समीप अवतरित,कृष्णभक्तों से घिरे,वन्दनीय
जनों के भी वन्दनीय स्वामी श्रीकृष्णबोधाश्रम जी महाराज की जय हो।*अवतरणस्थली
यमुना के किनारे,मांट के पास छाहरी,साधना बागपत पक्का घाट,कर्मभूमि
इन्द्रप्रस्थदिल्ली,अधिकांश समय यमुना की पावन सन्निधि में ही रहे,
उत्तराखण्डभूमौ हि जोशीमठे,शंकराचार्यपादेन
संस्थापिते।
शंकराचार्य पीठे च संशोभितो,वन्द्यवन्द्यो....2।। उत्तराखण्ड
की दिव्य भूमि जोशी मठ बदरिकाश्रम में, आदिजगद्गुरु शंकराचार्य भगवान द्वारा
संस्थापित,शंकराचार्य पीठ पर शोभायमान,वन्दनीयों के भी वन्दनीय पूज्य स्वामी
श्रीकृष्णबोधाश्रम जी महाराज की जय हो।
साधुता सौम्यता वाग्मिता
विज्ञता,साधनाराधनाध्यानसंधारणा।
सद्गुणा यत्र सर्वे समाभूषिताः,वन्द्यवन्द्.....।।3। साधुता,सौम्यता,वक्तृता,बहुज्ञता,साधना,आराधना,ध्यान,धारणा
इत्यादि सद्गुण जहां आकर सुशोभित हो गये,ऐसे
पूज्य श्री स्वामी जी महाराज की जय हो।
त्याग वैराग्ययोःज्ञानविज्ञानयोः,रौप्यसिंहासने
येन पूजा कृता।
मृत्तिका पात्र हस्तो यतीशेश्वरो,वन्द्यवन्द्यो..............।।4।।
दुनिया की अद्भुत घटना सम्पादित करने वाले, जिन्होंने चांदी के दिव्य
सिंहासन पर ज्ञान विज्ञान तथा त्याग वैराग्य को स्थापित करके उनकी विधिवत् पूजा
की,मिट्टी का पात्र हाथ में रखने वाले,यतियों में श्रेष्ठ,वन्दनीयों के भी वन्दनीय
पूज्य श्री की जय हो।
धर्मसंघस्य संवर्धने तत्परो,धर्मशिक्षाप्रचाराय
निद्रोज्झितः।
धर्मसम्राट्सखाधर्म रक्षाव्रती,वन्द्य वन्द्यो.............।।5।। धर्मसंघ के संवर्धन में
तत्पर,धर्मशिक्षा के प्रचार के लिये निद्रा सुख को भी त्यागने वाले, स्वामी करपात्री जी के अनन्य सखा,धर्म
रक्षा का व्रत लेने वाले,वंदनीयों के
भी वंदनीय श्री स्वामी जी की जय
हो।
शारदायाश्चलं सारदं मन्दिरम्,कर्मणा
सद्गुरुश्चेतसा सद्गुरुः।
निर्धनानां परःशंकरःशंकरो,वन्द्यवन्द्यो......।।6।।
ज्ञान प्रदाता सरस्वती के चल मंदिर(सचल पुस्तकालय)कर्म एवं चित्त से
वास्तविक सद्गुरु,निर्धनों के परं कल्याण कारक शंकर,वंदनीयों के भी वंदनीय श्री
स्वामी कृष्णबोधाश्रम जी महाराज की जय हो।
सात्विको भोजने सात्विको भाजने,सात्विको भूषणे
सात्विको भाषणे। सात्विकाःयस्य
सर्वाः क्रियाः सिद्धिदाः,वन्द्यवन्द्यो.......................।।7।।
जिनके भोजन,भाजन,भजन,भूषण,भाषण,भाषा,भेष,इत्यादि में सात्विकता के दर्शन
होते थे,सिद्धि प्रदान करने वाली समस्त क्रियायें जिनकी सात्विकता से ओतप्रोत
थी,एसे वंदनीयों के भी वंदनीयपूज्य श्री कृष्णबोधाश्रम जी महाराज की जय हो।
ब्रह्मवैवर्तचारी जगद्गौरवः,सज्जनानां सदा
प्रेरको बोधकः।
पादपद्मेषु तेषां सदा श्रद्धया,त्र्यम्बकेनार्प्यते वाक्प्रसूनाञ्जलिः।।8।।
अधिकांशतया गंगा यमुना के मध्य भाग में ही विचरण करने वाले,सज्जनों के हृदय
में सदा सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा उत्पन्न करने वाले,पूज्य श्री जगद्गुरु
शंकराचार्य स्वामी श्री कृष्णबोधाश्रम जी महाराज के पावनतम पादारविन्दों में
त्र्यम्बकेश्वर के द्वारा श्रद्धा पूर्वक वाक्प्रसूनाञ्जली समर्पित की जाती है।।
कलिकालुष्य
नाशाय,कृष्णबोधमवाप्तये।सत्स्मरणात्मकंस्तोत्रं मयाकारि तदष्टकम्।। कलि की
कलुषता के विनाशार्थ,कृष्ण तत्व की प्राप्ति के लिये,ये सन्तों के स्मरण रूपात्मक
स्तोत्र का मेरे द्वारा प्रणयन किया गया।।* एकवचन का प्रयोग श्रद्धा की न्यूनता का द्योतक
नहीं है,काव्य प्रवाह के समय जैसा आकार मां शारदा की शब्द जाह्न्वी ने लिया वह
आपके समक्ष है।।
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